जीवन के हर मोड़ पे हम अनेक परिस्थियों का सामना करते है जो हमे दुविधा में छोड़ जाते है । अंतर्मन ओर बहरी दुनिया के बीच निरंतर चल रहे इस द्वंद को डा॰ हरिवंश राय बच्चन जी ने कितनी सुन्दरता से शब्दो में ढाला है -
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।
ये पंक्तिया आज भी मुझे उतना ही अविभूत कर जाती है , जितना आज से सात वर्ष पहले पढ़ के हुआ था ।
4 comments:
jo dil ki gehraiyon ko bha jata hai hamesha ke liye apni nishaniyaan chod jata hai..chahe umar kitni bhi ho jaye par yaadein to hamesha hi taaza rehti hai...nice collection! keep it up
ज्योति ,
सही कहा आप ने । कुछ बाते होती है जिनकी चाप मन पे इतनी गहरी होंती है कि हमे हर मोड़ पे अपनी याद दिलाती है । बच्चन जी कि इस कविता के छंद मुझे कई बार याद आये है और हर बार एक नया आयाम जोड़ कर गए है ।
- आशुतोष
bahut hi accha prayaas hai... bhaav to hum sab me hote hai par usee sabd dene ki himmat sirf tum hi kar paye ho..
it shows that u really write from heart...
Keep writing..
aparna
अपर्णा ,
बहुत बहुत धन्यवाद । सच कहा आप ने कि, भावो को शब्द देने का साहस सब में नही होता , सच कहू तो , ये हिम्मत मुझमे कहा से आयी ये तो मै खुद भी नही जानता । मगर एक चीज़ अवश्य जानता हू , अगर मै ये कोशिश कर सकता हू तो निःसंदेह आप भी कर सकती है ।
-आशुतोष
Post a Comment