ख़्वाब बुनना
यादें संजोना
बातो का पुलिंदा
रोज़ खोलना
कुछ मुस्कुराहतो से सिलवट हटाना
और फिर कुछ नया तहाना
भूल कर सब
एक पल को
दोबारा जीना
और आज कि
किस्मत कि मार
को झूठलाना
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एक शेर अक्सर ज़ेहन मे आता है और घर कर जाता है -
मेरे खुशनुमा इरादों मेरा साथ देना
किसी और से नही मेरा खुद से सामना है
जब यथार्थ मन का हौसला पस्त करने लगता है , और जीवन विशमताओ का पहाड़ लगने लगता है , तो एक तलाश शुरू होती है - कारण कि ; और मन कि ही गहराई मे - सबलता कि । यह शायद खुद को बहलाने का भी एक प्रयास है । खुश- फ़हम होना सिर्फ ग़ालिब ने नही, हमने भी सीखा है, महसूस किया है ...
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2 comments:
बहुत बढ़िया,जनाब. आप हमेशा खुश फहम रहें, लिखते रहें यूँ ही, शुभकामनायें.
समीर भाई ,
बहुत बहुत धन्यवाद ... बस यू ही पढते रहिए और प्रोत्साहित करते रहिए, खुश- फ़हमी कायम रहेगी :)
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