Monday, 10 September 2007

व्यापन ...

मॅन पे से
पाषाण सरेखी भाव शून्यता
जब पिघलती है
तब ना उन्माद होता है
ना उदासीनता

तीस बहती है भीतर
आखे मौन रहती है

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