मेरी अनुभूतियाँ ...
Tuesday, 15 September 2009
व्याकुल
मन की खामोशी को
निचोर्ड कर
कुछ शब्दों में
भर लेता हू
भाव भी कुछ
निकल ही आते है
आशय भी
मिल जाते है
पर
बाद में बचे
कोरे मन
का क्या करू मै
जो इस सब के बाद भी
उतना ही
व्याकुल
और अशांत है
Friday, 4 September 2009
सफ़र ...
कच्चे
अधपके
कुछ ख्वाब
है बस
खामोशी
और शोर के बीच
जिंदगी को
पार लगाते
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