Tuesday 22 May 2007

अभिवादन ...

एक मित्र कि चेष्ठा का अभिवादन, जिसने मुझे खुद का सामना करना सिखाया ..... एक अधूरी कविता, जिसे मैं, पूरी तरह समर्पित करता हू ...

-------------------------------------------------------------------------------------

वक्त की चाल
के साथ बदलते
देखा क्या - क्या सब
ये तो अब मुझे शायद
पूरी तरह याद नही

थपेड़ो पे
अनुभव का चोगा ड़ाल के
एक झूठी हसी कि ओट से
बस झकता रहा

फिर भी मन के किसी कोने मे
है आत्म-विश्वास
और जीवन
और संघर्ष

पर सबसे ज्यादा मेरा सहारा
तुम्हरा मनोबल है
जो मुझे कभी हारने नही देता

-------------------------------------------------------------------------------------

After a journey of endless quest for peace and happiness which kept pulling me apart, taking me a million places, looking for peace in all thats external- things, people, relations; I complete a full circle and come home to myself. And find that the solution to all questions that I was seeking answers to was already there, right in front of me, at a place I had never bothered to look - within. And whats even more ironical is that it all started when I started running away from myself, living a life of repressal and self-denial.

A journey of a thousand miles ends when you come to terms with yourself.

Tuesday 8 May 2007

खुद से बाते ...

ख्वाब आते है रोज़ एक दस्तक देते है
धीरे से कुछ उम्मीदो का वास्ता देते
और फिर चुप-चाप से मायूस हो कर लौट जाते है

कभी मन बेचैन हो उठता है
अपने आप से, और कभी हर उस शै से लड़ता है
जिस्से मुझे सहरा मिलता है

लगता है जैसे
मैं खुद से लड़ रहा हूँ
और शायद थक भी चुका हूँ

चलते रेहने की नसीहत देना
और हसते रेहना
इतना मुशकिल भी नही जीना

फिर क्यूँ मैं हर ख्वाब को झूठलाता हूँ
कदमो के निशान मिटाता हूँ
और अपने मे सिमट जाता हूँ

Monday 7 May 2007

वेदना ...

कल रात फिर से
आंखें बोझिल थी

आंखें नम
नज़रे धूमिल

मैं जागा हुआ
ख्वाब तलाश रहा था

समय और बिखरे हर पल में
सांस लेना
जीवन की आस में

कमरे में चुन्धियाता अँधेरा
रात भर मुझे जगाये रखा

...................................................................................

कविता लिखते समय प्रायः मॅन में एक वाद - विवाद उठता है , शैली - प्रारूप (style - form) के बीच । एक ओर अपने को व्यक्त करने कि जद्दो-जेहद है है , सब कुछ शब्दो में उतर कर मॅन को हल्का करना , तो दूसरी तरफ एक विवशता है , कैसे कहू वो सब जो मेरे लिए इतना मायने रखता है , क्या शब्दो उस सब को कभी मैं बाँध पाउगा ।

अभिव्यक्ति साधन है या मृग-तृष्णा .......