Wednesday 9 December 2009

मकाम

जो रौशनी की शै
बुझा दी थी
कभी की, खुद ही

आज भी
उसकी आस
दिल में रहती है

अँधेरी राह
तनहा सफ़र
खुद ही चुना है

मगर जाने क्यों
उस उजाले की तलाश
दिल में रहती है

खुद की तलाश में
जितना दूर जाता हू खुद से
उतना ही तुम्हे पास पाता हू

जान के भी सब
एक अनजान खलिश हमेशा
दिल में रहती है

रास्ता कट जाएगा अकेले भी
मगर जीने की आस
दिल में रहती है

Wednesday 28 October 2009

साकार - निराकार

शब्द जाल में
जब
मायने पिरोने
को ना बचे
मन तब
खामोशी ओढ़ लेता है
नितांत
निर्विरोध
बस
अपने में सिमट कर
करता है इंतज़ार
सुबह की पौ फटने का

Tuesday 15 September 2009

व्याकुल

मन की खामोशी को
निचोर्ड कर
कुछ शब्दों में
भर लेता हू

भाव भी कुछ
निकल ही आते है
आशय भी
मिल जाते है

पर
बाद में बचे
कोरे मन
का क्या करू मै

जो इस सब के बाद भी
उतना ही
व्याकुल
और अशांत है

Friday 4 September 2009

सफ़र ...

कच्चे
अधपके
कुछ ख्वाब
है बस

खामोशी
और शोर के बीच
जिंदगी को
पार लगाते

Monday 31 August 2009

मोड़...

जिंदगी फिर
उसी मोड़
पे मूड़ गयी

ले आई मुझे
फिर उसी
रहगुज़र

जहा से
चला था मै कभी
भूलने को सफ़र

Monday 24 August 2009

मन का शोर...

जो लफ्जों में कैद था कभी
आज उसे मै आजाद करता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

अपने को बांध रखा था जिन सीमओं में
आज उस कैद से अपने को आजाद करता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

समय ने जकडा था जिस बंदिश में आज उससे बाहर आता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

उम्मीद से मायूसी तक लम्बा रास्ता था जो
आज उसे मै आराम देना कहता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

Friday 14 August 2009

क्या होता है

क्या होता है
जब जो चाहा
वो नहीं होता

लोगो से सुना था
दुनिया रुक जाती है
पलट जाता है सब कुछ

झूठ है सब

साँसे अब भी
ज्यो की त्यों है
नब्ज़ भी चल रही है

कुछ भी तो नहीं बदला

बदला है तो सिर्फ नजरिया
और मुस्कुराहट में
अब शामिल है दर्द की एक टीस

Monday 10 August 2009

गुजारिश

कल शाम मैंने
सूरज को लहरों में पिघलते देखा
धीरे धीरे
अपना सारा दर्द धुल रहा था

कल शाम मैंने
आसमान को समंदर में सिमटे देखा
नीले से स्याह होता
सब कुछ अपने अन्दर समाये जा रहा था

कल शाम मैंने
तारो को टिमटिमाते
चाँद को सांस लेता देखा
अपनी अलग ही दुनिया में मदमस्त

कल शाम मैंने
इन सबको मुझसे कहता देखा
कोई तो रंग चुनो
हस लो, रो लो, या जी लो

Monday 3 August 2009

समझौता

सपने सारे
थक कर चूर है
निढाल

रात के घने अँधेरे में
कोई रास्ता
उन्हें नज़र आये तो भी कैसे

डरे हुए है सारे
मायूस
और हताश भी है

जो लडाई वो लड़ रहे थे
उसमे अब कोई नहीं है उनके साथ
मै भी नहीं

अब दिलासा
उन्हें दू भी तो कैसे?
और क्या?

ज़िन्दगी के आगे
मैंने घुटने टेक दिए है
तुम भी अब हार मान लो

सारी रात
नीद ना तुम्हे आनी है
और न मुझे

चलो साथ बैठे
और क्यों ना एक दुसरे को
अपनी आप-बीती सुनाये

Thursday 23 July 2009

शून्य

मन आज भी खाली है
जाने किस ओर बढ़ चला है
दिशाहीन
गंतव्यहीन
भावहीन

मन तब भी खाली था
मगर तब एक आस थी
दिशा की खोज
राहो की खोज
भावो की खोज

Wednesday 4 February 2009

प्रयास...

मै इश्वर को नही 
ख़ुद को तलाश रहा हू

एक अदद इंसान बन सकू 
बस यही प्रयास है

Friday 30 January 2009

हौसला...

उस दिन तुमने मुस्कुराया था  
पकड़ा था मेरा हाथ कस के  
और दूर तक साथ चलके  
मुझे हौसला दिलाया था  

उस दिन मै रोया था  
पकड़ा था तुम्हारा हाथ कस के  
और देर तक मेरा सर सहला कर तुमने  
मुझे हौसला दिलाया था  

उस देर तक मै खामोश था  
और मौन था मेरा मन 
उस बेचैनी को तुमने समझा 
और मुझे हौसला दिलाया था