Monday, 10 August 2009

गुजारिश

कल शाम मैंने
सूरज को लहरों में पिघलते देखा
धीरे धीरे
अपना सारा दर्द धुल रहा था

कल शाम मैंने
आसमान को समंदर में सिमटे देखा
नीले से स्याह होता
सब कुछ अपने अन्दर समाये जा रहा था

कल शाम मैंने
तारो को टिमटिमाते
चाँद को सांस लेता देखा
अपनी अलग ही दुनिया में मदमस्त

कल शाम मैंने
इन सबको मुझसे कहता देखा
कोई तो रंग चुनो
हस लो, रो लो, या जी लो