सपने सारे
थक कर चूर है
निढाल
रात के घने अँधेरे में
कोई रास्ता
उन्हें नज़र आये तो भी कैसे
डरे हुए है सारे
मायूस
और हताश भी है
जो लडाई वो लड़ रहे थे
उसमे अब कोई नहीं है उनके साथ
मै भी नहीं
अब दिलासा
उन्हें दू भी तो कैसे?
और क्या?
ज़िन्दगी के आगे
मैंने घुटने टेक दिए है
तुम भी अब हार मान लो
सारी रात
नीद ना तुम्हे आनी है
और न मुझे
चलो साथ बैठे
और क्यों ना एक दुसरे को
अपनी आप-बीती सुनाये
8 comments:
retirement 30 saal baad hai ....
abhi se aise nahi sochte
bad thoughts on a monday
दोस्त काश सोचने को हम अपने मन मुताबिक ताल सकते...
Though quite intense ....but still i hope its just a state of mind.
TC.
@ Poonam
Emotions are a reflection of our current mental state aren't they ?
yes they are.
:)
In a moment of courage just wrote down what I felt...
yes.right.It needs a lot of courage to pen down exactly what you feel at the moment,literally,sometimes.
@Poonam...
Very true. Its not easy to be honest with oneself. At the personal level, thats our greatest fear and challenge.
Reminds me of an old urdu couplet which goes -
मेरे खुशनुमा इरादों मेरा साथ देना,
किसी और से नहीं मेरा खुद से सामना है.
-Ashutosh
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