Monday, 3 August 2009

समझौता

सपने सारे
थक कर चूर है
निढाल

रात के घने अँधेरे में
कोई रास्ता
उन्हें नज़र आये तो भी कैसे

डरे हुए है सारे
मायूस
और हताश भी है

जो लडाई वो लड़ रहे थे
उसमे अब कोई नहीं है उनके साथ
मै भी नहीं

अब दिलासा
उन्हें दू भी तो कैसे?
और क्या?

ज़िन्दगी के आगे
मैंने घुटने टेक दिए है
तुम भी अब हार मान लो

सारी रात
नीद ना तुम्हे आनी है
और न मुझे

चलो साथ बैठे
और क्यों ना एक दुसरे को
अपनी आप-बीती सुनाये

8 comments:

नि:स्वार्थ... said...

retirement 30 saal baad hai ....
abhi se aise nahi sochte
bad thoughts on a monday

Ashutosh said...

दोस्त काश सोचने को हम अपने मन मुताबिक ताल सकते...

Poonam Nigam said...

Though quite intense ....but still i hope its just a state of mind.

TC.

Ashutosh said...

@ Poonam

Emotions are a reflection of our current mental state aren't they ?

Poonam Nigam said...

yes they are.

Ashutosh said...

:)

In a moment of courage just wrote down what I felt...

Poonam Nigam said...

yes.right.It needs a lot of courage to pen down exactly what you feel at the moment,literally,sometimes.

Ashutosh said...

@Poonam...
Very true. Its not easy to be honest with oneself. At the personal level, thats our greatest fear and challenge.

Reminds me of an old urdu couplet which goes -

मेरे खुशनुमा इरादों मेरा साथ देना,
किसी और से नहीं मेरा खुद से सामना है.

-Ashutosh