Monday, 24 August 2009

मन का शोर...

जो लफ्जों में कैद था कभी
आज उसे मै आजाद करता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

अपने को बांध रखा था जिन सीमओं में
आज उस कैद से अपने को आजाद करता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

समय ने जकडा था जिस बंदिश में आज उससे बाहर आता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

उम्मीद से मायूसी तक लम्बा रास्ता था जो
आज उसे मै आराम देना कहता हू

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

2 comments:

Nidhi said...

चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू

उम्मीद से मायूसी तक लम्बा रास्ता था जो
आज उसे मै आराम देना कहता हू

Very Nice & Different

Ashutosh said...

@ Nidhi... thanks..