मेरी अनुभूतियाँ ...
Tuesday, 6 July 2010
रात के तीन पहर...
I
झूठी दिलासा से
सच्ची मायूसी ही भली
II
खामोश रात का
स्याह अँधेरा
सब समेत लेता है अपने अन्दर
उसी में समा जाने दो
III
पौ फटने को आई
तुम भी चलो अपनी राह
मुझे भी चैन से
बिखर जाने दो
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