Wednesday, 9 December 2009

मकाम

जो रौशनी की शै
बुझा दी थी
कभी की, खुद ही

आज भी
उसकी आस
दिल में रहती है

अँधेरी राह
तनहा सफ़र
खुद ही चुना है

मगर जाने क्यों
उस उजाले की तलाश
दिल में रहती है

खुद की तलाश में
जितना दूर जाता हू खुद से
उतना ही तुम्हे पास पाता हू

जान के भी सब
एक अनजान खलिश हमेशा
दिल में रहती है

रास्ता कट जाएगा अकेले भी
मगर जीने की आस
दिल में रहती है