Tuesday, 31 August 2010

आवेग ...

दो दिन से घर पे बैठे बाहर हो रही मूसलाधार बारिश को ताकता रहा ... लगातार हो रही बारिश के आवेग को समझने की जुगत में लगा रहा... फिर जो भी, जैसे भी प्रतीत हुआ उसे शब्दों में बाँध दिया...

आवेग

आकाश आज फूट पड़ा 
महीनो से भरा 
उसके मन का गुबार 
उमड़ के निकला

गर्मी का संताप 
सब झुलसा के 
एक तपिश भर 
छोड़ गया था

मगर आज 
उसने अपने को 
खाली करने की 
ठान ली है 

उन्माद से 
उदासी तक 
सब बह निकला है 
आवेग में 

5 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया!

Abhinav Singh said...

Seems like someone got freedom at midnight

:)

Ashutosh said...

@ Sameer ji... dhanyawaad...

@ Satyanveshi... liberation at midnight :)

Unknown said...

waooo!!!
nice.. i liked it,,,,
kitani gehraii hai shabdon main!!

Ashutosh said...

नुपुर ... धन्यवाद :)