Monday 22 September 2008

अंत या आगाज़

---------------------------------------------------

उम्मीद की डोर लिए हाथो में
किस्मत के झोको का सामना है
आज उड़ान बहुत ऊँची है
या ख़ुद में ही सिमट जाना है

---------------------------------------------------

नाकामियों का अपना अलग ही एक एहसास होता है . जब एक बड़ी उम्मीद का सहारा छूटता है, तब एक ओर किसी पुराने साथी से जुदा होने का दुःख होता है . एक सूनेपन प्रतीत होता है . मगर साथ ही साथ दूसरी ओर एक नई शुरुआत का आगाज़ होता है . फिर से जीवन चुनौती देना है, एक नए रास्ते पे चलने की.

No comments: