Saturday, 13 March 2010

पतझड़

सूखे पीले पत्ते
शाख से लटक रहे थे
उनका कोई वजूद न था
और ना ही उन्हें
किसी की तलाश थी

वो उन यादो की तरह थे
जिन्हें ना ही कभी
ठुकरा जा सकता है
और ना ही कभी
अपनाया जा सकता है

अलग होना ही
उनकी नियति है
पुराने पड़ चुके
अधूरे ख्वाबो की तरह
उन्हें भी टूटना ही था

अब दोनों को
इंतज़ार उस पतझड़ का है
बहा कर
ले जाए जो
सब अपने आवेग में

3 comments:

nikhil said...

Bahut Khub!!!

Ramesh Sood said...

Sookha Patta,
Chalte Chalte mere paanv ke niche aya tha,
Nahi, kahin kuchh nahin hua...

Ashutosh said...

@ निखिल ... धन्यवाद दोस्त

@ रमेश जी ... सूखे पत्ते यहाँ सांकेतिक है . वो यादे जो मुरझा जाती है, जब वो सूख कर पाँव के नीचे आती है और चूर होती है तो फिर से मन में बहुत से भाव जगा जाती है :)

- आशुतोष