सूखे पीले पत्ते
शाख से लटक रहे थे
उनका कोई वजूद न था
और ना ही उन्हें
किसी की तलाश थी
वो उन यादो की तरह थे
जिन्हें ना ही कभी
ठुकरा जा सकता है
और ना ही कभी
अपनाया जा सकता है
अलग होना ही
उनकी नियति है
पुराने पड़ चुके
अधूरे ख्वाबो की तरह
उन्हें भी टूटना ही था
अब दोनों को
इंतज़ार उस पतझड़ का है
बहा कर
ले जाए जो
सब अपने आवेग में
3 comments:
Bahut Khub!!!
Sookha Patta,
Chalte Chalte mere paanv ke niche aya tha,
Nahi, kahin kuchh nahin hua...
@ निखिल ... धन्यवाद दोस्त
@ रमेश जी ... सूखे पत्ते यहाँ सांकेतिक है . वो यादे जो मुरझा जाती है, जब वो सूख कर पाँव के नीचे आती है और चूर होती है तो फिर से मन में बहुत से भाव जगा जाती है :)
- आशुतोष
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