शुक्र है
उन लोगो का
उन बातो का
जो ज़ख्म कुरेदते रहते है
ज़िन्दगी के एहसास को
और मुझको
जिंदा रखते है
Post Script: बीती रात जैसे ही इन पंक्तियों को उकेरा, चित्रा सिंह की गायी ग़ज़ल - "किसी रंजिश को हवा दो" (http://www.youtube.com/watch?v=GWzAx-JNYZw) याद आ गयी। फिर से उस ग़ज़ल को सुना और कुछ नये मायने समझे और महसूस किये ।
2 comments:
लोग दर्द की बात करते हैं...और मैने मुस्कराने के लिए एक जख़्म कुरेदा है अभी!!
-बहुत खूब!! अच्छा लगा कि फिर कुछ लिखा तो...अब नियमित मौका निकालें- थोड़ा सा ही सही!!
शुभकामनायें...
धन्यवाद समीर भाई , पूरा प्रयास रहेगा महसूस और अभिव्यक्त करने का ।
- आशुतोष
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