Saturday, 28 April 2007

आधार

मेरी फिलॉसफी का निचोड़ है कि - मानव स्वयंसिद्ध है - जिसके जीवन का नैतिक उद्देश्य
स्वयं कि खुशी है - जिसका सबसे महान कार्य सृजन है - और जिसके लिये तर्क ही
सर्वोपरि है - आयन रैण्ड



आयन रैण्ड के दर्शन का निचोड़ , उन्ही के शब्दो में । जिसे आज तक मैं अपने जीवन का आदर मानता हू।

जिन लोगो को हिन्दी समझने में कठिनाई आयी हो, उनके लिए मूल उद्धरण यह रहा -

Achievement of your happiness is the only moral purpose of your life, and that happiness, not pain or mindless self-indulgence, is the proof of your moral integrity, since it is the proof and the result of your loyalty to the achievement of your values - Ayn Rand

अंग्रेजी में अनेक बार पढने के बाद भी हिन्दी में इसे पढने कि अनुभूति कुछ अलग ही थी ।

Thursday, 19 April 2007

नेता और नारे ...

अप्रैल का महिने, उत्तर प्रदेश में चुनाव और बढते पारे में निःसंदेह ही गहरा संबंध है । ये एक ऐसा समय होता है जब हमारे प्यारे नेतागण , पिछले चुनाव में विजयी जन - प्रतिनिधि एवं हम जैसे आम आदमी मिल के पसीना बहते है । ये बात अगल है हर एक का तर -ब -तर होने का करण अगल है -
  • नेतागण के लिए, ये जनसेवा की तत्परता है
  • पहले से पदासीन लोगो के लिए, ये मोह और यथार्थ का द्वंद है
  • आम आदमी के लिए .................... (आप खुद ही समझदार है)

नारों का हमारे देश के हर बड़े आन्दोलन से गहरा नाता रहा है । इसी संबंध को सम-सामायिक परिपेक्ष में देखता फुरसतिया जी का यह लेख - हर जोर जुलुम की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है

Tuesday, 17 April 2007

दुविधा

जीवन के हर मोड़ पे हम अनेक परिस्थियों का सामना करते है जो हमे दुविधा में छोड़ जाते है । अंतर्मन ओर बहरी दुनिया के बीच निरंतर चल रहे इस द्वंद को डा॰ हरिवंश राय बच्चन जी ने कितनी सुन्दरता से शब्दो में ढाला है -

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।

ये पंक्तिया आज भी मुझे उतना ही अविभूत कर जाती है , जितना आज से सात वर्ष पहले पढ़ के हुआ था ।

Wednesday, 11 April 2007

पृष्टभूमि

कुछ लेख जो इस ब्लोग की बुनियाद बने -

http://mynobrainers।blogspot.com/search/label/हिन्दी

Sunday, 8 April 2007

विवेचना

कविता तथा लेखन मन के उन भावो को व्यक्त करने का माध्यम है जिन्हे हम प्रायः परोक्ष रुप से व्यक्त नही कर पाते है । हमारे अन्दर चल रहे द्वन्द को कभी स्वयं समझना एक चुनौती सरीखे है ।

शाम का समय मेरे मॅन को हमेशा ही विचलित कर जाता है । कई बार मैंने इसका कारण समझने का प्रयास किया है और पूरी तरह असफल रह हूँ । मेरे अन्दर का अकेलापन और मौन स्पष्ट रुप से प्रकट होता है । और इस सब के बीच मै निःशब्द और निर्भाव......

Friday, 6 April 2007

हिन्दी शब्दकोष

मेरे जैसे नौसिखिया हिन्दी ब्लॉगर के लिए एक बहुउपयोगी वेबसाइट -> http://www.shabdkosh.com/

Wednesday, 4 April 2007

प्रारंभ

अपने हिन्दी लेखन को संकलित करने का प्रयास ।