खुश-फेहेम
रहे सब
तुम
जिंदगी
और मै भी
Tuesday, 21 December 2010
Tuesday, 31 August 2010
आवेग ...
दो दिन से घर पे बैठे बाहर हो रही मूसलाधार बारिश को ताकता रहा ... लगातार हो रही बारिश के आवेग को समझने की जुगत में लगा रहा... फिर जो भी, जैसे भी प्रतीत हुआ उसे शब्दों में बाँध दिया...
आवेग
आकाश आज फूट पड़ा
महीनो से भरा
उसके मन का गुबार
उमड़ के निकला
गर्मी का संताप
सब झुलसा के
एक तपिश भर
छोड़ गया था
मगर आज
उसने अपने को
खाली करने की
ठान ली है
उन्माद से
उदासी तक
सब बह निकला है
आवेग में
Tuesday, 6 July 2010
रात के तीन पहर...
I
झूठी दिलासा से
सच्ची मायूसी ही भली
II
खामोश रात का
स्याह अँधेरा
सब समेत लेता है अपने अन्दर
उसी में समा जाने दो
III
पौ फटने को आई
तुम भी चलो अपनी राह
मुझे भी चैन से
बिखर जाने दो
झूठी दिलासा से
सच्ची मायूसी ही भली
II
खामोश रात का
स्याह अँधेरा
सब समेत लेता है अपने अन्दर
उसी में समा जाने दो
III
पौ फटने को आई
तुम भी चलो अपनी राह
मुझे भी चैन से
बिखर जाने दो
Tuesday, 15 June 2010
Wednesday, 19 May 2010
अभाव...
आज मेरे पास
बहुत ही कम शब्द
बहुत ही कम मायने है
जो कह ना पाया
और जो कह ना सका
उसी पुलिंदे में
कैद सब अफ़साने है
आज मेरे पास
बहुत ही कम शब्द
बहुत ही कम मायने है
खोल देता वो बंधन
इसी आस में
रेह गए हम
जिंदगी की तलाश में
आज मेरे पास
बहुत ही कम शब्द
बहुत ही कम मायने है
कभी दूर से देखे थे
रौशनी के दीये
अब तो आँखों में
बस अँधेरे चुंधियाते है
आज मेरे पास
बहुत ही कम शब्द
बहुत ही कम मायने है
Thursday, 18 March 2010
Saturday, 13 March 2010
पतझड़
सूखे पीले पत्ते
शाख से लटक रहे थे
उनका कोई वजूद न था
और ना ही उन्हें
किसी की तलाश थी
वो उन यादो की तरह थे
जिन्हें ना ही कभी
ठुकरा जा सकता है
और ना ही कभी
अपनाया जा सकता है
अलग होना ही
उनकी नियति है
पुराने पड़ चुके
अधूरे ख्वाबो की तरह
उन्हें भी टूटना ही था
अब दोनों को
इंतज़ार उस पतझड़ का है
बहा कर
ले जाए जो
सब अपने आवेग में
Monday, 22 February 2010
दो ढीठ ...
ना जिंदगी हमे बदल सकी
और ना हम जिंदगी को
ढीठ है वो
और ढीठ है हम
उसने ना कभी हमारी सुनी
और ना हमने कभी उसकी
दो राहे
अनजान डगर
एक उसने चुनी
और एक हमने
और ना हम जिंदगी को
ढीठ है वो
और ढीठ है हम
उसने ना कभी हमारी सुनी
और ना हमने कभी उसकी
दो राहे
अनजान डगर
एक उसने चुनी
और एक हमने
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