ना जिंदगी हमे बदल सकी
और ना हम जिंदगी को
ढीठ है वो
और ढीठ है हम
उसने ना कभी हमारी सुनी
और ना हमने कभी उसकी
दो राहे
अनजान डगर
एक उसने चुनी
और एक हमने
Monday, 22 February 2010
Wednesday, 9 December 2009
मकाम
जो रौशनी की शै
बुझा दी थी
कभी की, खुद ही
बुझा दी थी
कभी की, खुद ही
आज भी
उसकी आस
दिल में रहती है
उसकी आस
दिल में रहती है
अँधेरी राह
तनहा सफ़र
खुद ही चुना है
तनहा सफ़र
खुद ही चुना है
मगर जाने क्यों
उस उजाले की तलाश
दिल में रहती है
उस उजाले की तलाश
दिल में रहती है
खुद की तलाश में
जितना दूर जाता हू खुद से
उतना ही तुम्हे पास पाता हू
जान के भी सब
एक अनजान खलिश हमेशा
दिल में रहती है
एक अनजान खलिश हमेशा
दिल में रहती है
रास्ता कट जाएगा अकेले भी
मगर जीने की आस
दिल में रहती है
Wednesday, 28 October 2009
साकार - निराकार
शब्द जाल में
जब
मायने पिरोने
को ना बचे
मन तब
खामोशी ओढ़ लेता है
नितांत
निर्विरोध
बस
अपने में सिमट कर
करता है इंतज़ार
सुबह की पौ फटने का
Tuesday, 15 September 2009
व्याकुल
मन की खामोशी को
निचोर्ड कर
कुछ शब्दों में
भर लेता हू
भाव भी कुछ
निकल ही आते है
आशय भी
मिल जाते है
पर
बाद में बचे
कोरे मन
का क्या करू मै
जो इस सब के बाद भी
उतना ही
व्याकुल
और अशांत है
Friday, 4 September 2009
Monday, 31 August 2009
मोड़...
जिंदगी फिर
उसी मोड़
पे मूड़ गयी
ले आई मुझे
फिर उसी
रहगुज़र
जहा से
चला था मै कभी
भूलने को सफ़र
Monday, 24 August 2009
मन का शोर...
जो लफ्जों में कैद था कभी
आज उसे मै आजाद करता हू
चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू
अपने को बांध रखा था जिन सीमओं में
आज उस कैद से अपने को आजाद करता हू
चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू
समय ने जकडा था जिस बंदिश में आज उससे बाहर आता हू
चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू
उम्मीद से मायूसी तक लम्बा रास्ता था जो
आज उसे मै आराम देना कहता हू
चुप रहता हू आज मै
और मन का शोर सुनता हू
Friday, 14 August 2009
क्या होता है
क्या होता है
जब जो चाहा
वो नहीं होता
लोगो से सुना था
दुनिया रुक जाती है
पलट जाता है सब कुछ
झूठ है सब
साँसे अब भी
ज्यो की त्यों है
नब्ज़ भी चल रही है
कुछ भी तो नहीं बदला
बदला है तो सिर्फ नजरिया
और मुस्कुराहट में
अब शामिल है दर्द की एक टीस
Monday, 10 August 2009
गुजारिश
कल शाम मैंने
सूरज को लहरों में पिघलते देखा
धीरे धीरे
अपना सारा दर्द धुल रहा था
कल शाम मैंने
आसमान को समंदर में सिमटे देखा
नीले से स्याह होता
सब कुछ अपने अन्दर समाये जा रहा था
कल शाम मैंने
तारो को टिमटिमाते
चाँद को सांस लेता देखा
अपनी अलग ही दुनिया में मदमस्त
कल शाम मैंने
इन सबको मुझसे कहता देखा
कोई तो रंग चुनो
हस लो, रो लो, या जी लो
Monday, 3 August 2009
समझौता
सपने सारे
थक कर चूर है
निढाल
रात के घने अँधेरे में
कोई रास्ता
उन्हें नज़र आये तो भी कैसे
डरे हुए है सारे
मायूस
और हताश भी है
जो लडाई वो लड़ रहे थे
उसमे अब कोई नहीं है उनके साथ
मै भी नहीं
अब दिलासा
उन्हें दू भी तो कैसे?
और क्या?
ज़िन्दगी के आगे
मैंने घुटने टेक दिए है
तुम भी अब हार मान लो
सारी रात
नीद ना तुम्हे आनी है
और न मुझे
चलो साथ बैठे
और क्यों ना एक दुसरे को
अपनी आप-बीती सुनाये
थक कर चूर है
निढाल
रात के घने अँधेरे में
कोई रास्ता
उन्हें नज़र आये तो भी कैसे
डरे हुए है सारे
मायूस
और हताश भी है
जो लडाई वो लड़ रहे थे
उसमे अब कोई नहीं है उनके साथ
मै भी नहीं
अब दिलासा
उन्हें दू भी तो कैसे?
और क्या?
ज़िन्दगी के आगे
मैंने घुटने टेक दिए है
तुम भी अब हार मान लो
सारी रात
नीद ना तुम्हे आनी है
और न मुझे
चलो साथ बैठे
और क्यों ना एक दुसरे को
अपनी आप-बीती सुनाये
Thursday, 23 July 2009
शून्य
मन आज भी खाली है
जाने किस ओर बढ़ चला है
दिशाहीन
गंतव्यहीन
भावहीन
मन तब भी खाली था
मगर तब एक आस थी
दिशा की खोज
राहो की खोज
भावो की खोज
जाने किस ओर बढ़ चला है
दिशाहीन
गंतव्यहीन
भावहीन
मन तब भी खाली था
मगर तब एक आस थी
दिशा की खोज
राहो की खोज
भावो की खोज
Wednesday, 4 February 2009
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